अपने भारतीय आक्रमणों में महमूद गजनवी को अप्रत्याशित सफलता मिली थी इस अनवरत सफलता के निम्नलिखित कारण दिए जा सकते हैं-


भारत की दयनीय राजनीतिक स्थिति
- महमूद के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक स्थिति अत्यंत दयनीय थी |
- भारतीय शासकों में राजनीतिक मतभेद वैमनस्य और पारस्परिक फूट थी | एकता एवं संगठन की उनमें नितांत कमी थी |
- भारतीय शासक उसके आक्रमणों के समय संगठित होकर शत्रु सेना को परास्त करने में असफल रहे |
- उसके सेना भारतीय सैनिकों की अपेक्षा अधिक संगठित थी | सेना में अश्वारोहियों की प्रधानता थी |
- उसके सैनिक नएअस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित थे और वह द्रुत गति से शत्रु सेना पर आक्रमण करते थे |
- द्वितीय, अपेक्षाकृत कुशल सेनानी और वीर योद्धा था उसमें सेना को समुचित ढंग से संगठित करने और युद्ध अच्छे ढंग से संचालित करने की विशेष प्रतिभा थी |
- महमूद शत्रु की दुर्बलता से सदा लाभ उठाने की ताक में रहता था | तृतीय, उसकी रणनीति और रणविधि भी प्रशंसनीय थी |
- वह प्रत्येक युद्ध में कुछ ना कुछ श्रेष्ठ सैनिकों को चुनकर अलग कर देता था जिनका प्रयोग अंतिम प्रहार के लिए किया जाता था |
- परिणामस्वरूप उसने अनेक बार अपनी पराजय को विजय में बदल दिया |
- चतुर्थ, भयंकर युद्ध के समय वह ऐसी रणनीति का उपयोग करता था जिसके अनुसार उसकी सेना विविध वर्गों और टुकड़ियों ने विभक्त होकर बारी-बारी से शत्रु पर प्रहार करती थी | दूसरी ओर हिंदू सैनिक लगातार लड़ते लड़ते क्लांत और अधीर हो जाते थे |
- पंचम, आवश्यकता पड़ने परमहमूद गजनवी अपने निर्भीक कार्यों और ओजस्वी भाषणों के द्वारा अपनी सेना के मनोबल को बढ़ाना चाहता था |
- उसके प्रतिकूल परिस्थितियों और संकट की स्थिति में भी अपने धैर्य एवं साहस को नहीं खोया |
- उसके हिंदू शासकों के विरुद्ध जिहाद का नारा लगाया और अल्लाह से सच्चे हृदय से शक्ति और विजय की प्रार्थना की |
भारतीयों में देशभक्त और राष्ट्रीयता का अभाव
- उस समय ना तो जनसाधारण में और ना शासकों में आजकल सी उग्र राष्ट्रीय भावनाएं राजनीतिक जागरूकता और सचेत देशभक्ति ही थी |
- राष्ट्र के रक्षार्थ कार्य करने की अपेक्षा कतिपय व्यक्तियों ने तो राष्ट्र द्रोही के कार्य किए और शत्रु से मिलकर गुप्त भेद प्रकट किए |
- सोमनाथ के पुजारियों के पारस्परिक झगड़ों से उन्हीं में से किसी एक ने शत्रु को दुर्ग और मंदिर का गुप्त भेद दिया तथा संभवत सोमनाथ पर आक्रमण के लिए आमंत्रित भी किया |
- कन्नौज के नरेश जयपाल और कालिंजर के चंदेल राजा गंड नेता महमूद से युद्ध करने की अपेक्षा पलायन करना ही श्रेयस्कर समझा |
- अन्हिलवाडा के भीमदेव ने महमूद का सामना करने का साहस ही नहीं किया |
- कुछ शासकों और राजाओं ने महमूद का विरोध किया लेकिन उन्हें उसकी वास्तविक शक्ति का पता चल गया तो उन्होंने विनय पूर्वक महमूद से संधि कर ली और वार्षिक कर देने का वचन दिया |
- इससे स्पष्ट है कि युद्ध में महमूद गजनवी की सफलता का कारण भारतीय सैनिकों की दुर्बलता नहीं बल्कि शासकों की अज्ञानता एवं निर्बलता थी |
धार्मिक उत्साह
- महमूद और उसके सैनिकों में अदम्य धार्मिक उत्साह और नवीन जोश था | इस्लाम के नाम पर भी हर कुर्बानी देने को तत्पर थे |
- धर्म की इस नवीन स्फूर्ति के और जोर से महमूद की विजय के लिए वह सब कुछ करने को उद्यत हो जाते थे |
- स्वार्थपरता और धनलोलुपता महमूद के सैनिकों में यह दृढ़ धारणा थी कि उनका युद्ध धार्मिक युद्ध है और वह ईश्वर के कार्य के लिए युद्ध कर रहे हैं और अपनी बलि दे रहे हैं |
- हिंदुओं में इस प्रकार की कोई प्रेरणादायक उत्तेजक बात नहीं थी अपितु विभिन्न संप्रदायों और मतमतान्तरों के कारण उन्हें पारस्परिक वैमनस्य और ईर्ष्या-द्वेष थे |
महमूद का व्यक्तित्व और महमूद के गुण
- महमूद का विलक्षण व्यक्तित्व और उसके विभिन्न गुणों व प्रतिभा उसे महान विजेताओं और सेना नायकों की प्रथम श्रेणी में रखते हैं |
- उसके साहस, शौर्य, वीरता, निर्भीकता, आत्मविश्वास, ईश्वर में विश्वास, कुशल सेनापति, मनुष्य की परख शत्रु की स्थिति और दुर्बलता ओं का अध्ययन करने तथा उसके अनुसार अपनी रणनीति में परिवर्तन करना और श्रद्धा प्राप्त करने की छमता रखना आदि गुण थे |
- जिनके समन्वयक से भारत में उसकी राजनीतिक सफलता सुगम हो गई थी |
SEE ALSO…
PDF National Movement 1923-39AD
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी का योगदान