स्वराज पार्टी (राष्ट्रीय आंदोलन)


- असहयोग आंदोलन के समय कांग्रेस द्वारा विधान परिषदों के बहिष्कार का निर्णय लिया गया था | परंतु इस विषय में कांग्रेस में दो मत थे | चितरंजन दास तथा मोतीलाल नेहरू के नेतृत्व में एक वर्ग का मत था कांग्रेस को चुनाव में भाग लेना चाहिए |
- वल्लभ भाई पटेल, डॉक्टर अंसारी और राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व वाला वर्ग इस प्रस्ताव का विरोधी था | यह लोग चाहते थे कि कांग्रेस चुनावों में भाग ना लेकर रचनात्मक कार्यों में लगी रहे |
- 1922 ईस्वी में कांग्रेस का अधिवेशन गया में संपन्न हुआ जिसके अध्यक्ष चितरंजन दास थे | अधिवेशन में परिषदों में न जाने का प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया | इस प्रस्ताव के समर्थकों ने 1923 में अब्दुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में दिल्ली में आयोजित विशेष अधिवेशन में कांग्रेस ने स्वराज्य को चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी स्वराज्य ने केंद्रीय और प्रांतीय परिषदों में 101 सीटों में से 42 सीटों पर विजय प्राप्त की |
- ब्रिटिश शासकों द्वारा प्रस्तुत उनकी नीतियों और प्रस्तावों के लिए परिषदों की सहमति प्राप्त करना लगभग असंभव बना दिया | सरकार ने 1928 ईस्वी में विधान परिषद में एक ऐसा विधेयक प्रस्तुत किया जिसके अंतर्गत वह भारत की आजादी के संघर्ष को समर्थन देने वाले किसी भी गैर भारतीयों को देश से निकाल सकती थी | परंतु यह विधेयक पारित नहीं हुआ सरकार ने अपने इस विधेयक को पब्लिक सेफ्टी बिल पेश करने का प्रयास किया तो विधान परिषद के अध्यक्ष विट्ठल भाई पटेल ने इस विधेयक को पेश करने की अनुमति नहीं दी |
- परिषदों में होने वाली चर्चा भारतीय सदस्य अक्सर सरकार को पछाड़ देते थे और उनकी निंदा करते थे | फरवरी 1924 में गांधी जी जेल से रिहा हुए और रचनात्मक कार्यक्रम को बढ़ावा दिया जिसे कांग्रेस के दोनों गुटों ने स्वीकार किया था |
- किसी भी कांग्रेस कमेटी के सदस्य के लिए यह अनिवार्य हो गया कि वह हाथों के कांते और बुने गए खादी का प्रयोग करें तथा पर प्रतिमाह 2000 गज सूत काटे | गांधीजी ने अखिल भारतीय खाद्य संगठन की स्थापना की तथा देश भर में खादी भंडार खोले गए गांधीजी खादी को गरीबों की दरिद्रता से मुक्ति देने वाला और देश के आर्थिक उत्थान का साधन मानते थे |
- इसने आजादी के संघर्ष के संदेश को देश के प्रति हिस्से में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंचाने में योगदान दिया चरखा आजादी के आंदोलन का प्रतीक बन गया |
किसानों और मजदूरों का आंदोलन
- आजादी के प्रथम वास्तविक जन आंदोलन में किसानों ने बड़ी संख्या में भाग लिया देश के विभिन्न भागों में किसान सभा आए हुए और उन्होंने जमींदारों तथा ब्रिटिश अधिकारियों के दमन के विरुद्ध लड़ाइयां लड़ी |
- अल्लूरी सीताराम राजू आंध्र के किसानों तथा आदिवासियों के विद्रोह का नेतृत्व किया किसान आंदोलन के दो पक्ष थे तथा दोनों का आजादी के राष्ट्रीय संघर्ष से संबंध था एक पक्ष था किसानों का आजादी के संघर्ष में शामिल होना जबकि दूसरा पक्ष किसानों की शिकायतों से संबंधित था जैसे जमींदारों सरकार तथा महाजनों द्वारा किसानों का शोषण |
बारदोली सत्याग्रह
- गुजरात में स्थित बारदोली के किसानों ने सरकार द्वारा बनाए गए 30% कर के विरोध में वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में सत्याग्रह किया | बाद में बारदोली सत्याग्रह की सफलता के बाद 30 % लगान बढ़ोतरी को गलत बताते हुए इसे घटाकर 6.03 कर दिया |
- सरदार पटेल के नेतृत्व में बारदोली सत्याग्रह के सफल होने के बाद बारडोली की महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि प्रदान की | औद्योगिक मजदूर भारतीय समाज में एक नए वर्ग के रूप में उभरे थे |
- 1918 में स्थापित मद्रास लेबर यूनियन आरंभिक दौर का एक प्रमुख मजदूर संगठन था | वी पी वडिआ सुंदरम चक्करई चेटीआर इसके प्रमुख नेता थे | भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन के अग्रणी नेता नारायण मल्हार जोशी थे जिन्होंने मजदूरों के पहले अखिल भारतीय ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई |
- इस संगठन की स्थापना मुंबई में 1920 ईस्वी में हुई थी इसके प्रथम अधिवेशन के अध्यक्ष लाला लाजपत राय थे | चितरंजन दास जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस जैसे दिग्गज नेता ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के अध्यक्ष बने |
- भारत के समाजवादी आंदोलन के नेताओं ने मजदूरों और किसानों को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई 11 अप्रैल 1936 को प्रथम अखिल भारतीय किसान सभा का गठन लखनऊ में हुआ इसके अध्यक्ष स्वामी सहजानंद सरस्वती को तथा महासचिव एनजी रंगा को बनाया गया |
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हर्षवर्धनऔर उसका साम्राज्य (पुष्यभूति वंश)